Sunday, May 3, 2009

मन

आकाश इतना विशाल है, हवा इतनी तीव्र है, मन मेरा इतना चंचल है।
कभी मोह के पांसों में तो कभी प्यार के झांसों में उलझता सा रहता है।
कभी स्वाद के चटखारों में तो कभी स्वप्न के जाल में घुमड़ता रहता है।
मन माने नही मेरे मंत्र को , बस मस्त होकर विचरण करता रहता है।
मेरा मन करता है मन की ना मानू पर ये मन मेरी बात सुनता कहाँ है।