Monday, November 22, 2010

एक छोटी सी आश ...

बस हड्डियाँ ही दिखती हैं उस शरीर से  
बह रहा है नीर हर अंग से
सूरज भी जल रहा है तपन से 
प्याज भी निरीह है लपट के थपेड़ों से 
अनजान है कर्म और अर्थ के योग से
भाग्य भी असमर्थ है उसकी वेदना से
विक्षिप्त सा है अंतर्द्वंद की ज्वाला से
बस तन्मय हो !
तोड़ रहा है पत्थर दो वक्त की रोटी की आश से  !!

मेरी आवाज

Saturday, November 20, 2010

एक छोटी सी आश

 रेल रेल डब्बे डब्बे वो चाय बेचता जाये
अठन्नी और चबन्नी से वो मुस्काता जाये !!
घर पर बैठी बूढी माँ इसी आश में जिये
काश कि बस इतना ले आये
तनिक पेट भर सो जाये !!
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मेरी आवाज

Thursday, November 18, 2010

सलाम !!

बहुत पहले लिखी गयी कविता के कुछ अंश आज लिखने का मन है -

इस्तकबाल करूँ में उसका

जो चिराग आंधी में झुलसा

फिर भी वह दमका ही दमका !

 

मेरी आवाज

Saturday, November 13, 2010

हठीला

एक बालक

खिलौने की तलाश में

अपनी मंजिल तलाशता

खोजता, उतरता, चढ़ता

सूर्य, चंद्र और आकाश

को भी पाने की अभिलाषा रखता

हर राह को उकेरता

आशामय हो निहारता

उद्वेलित हो मग्न रहता

किड्स जब ज्येष्ठ को देखता

जीतने की आशा दोहराता

मंजिल पाने तक

प्रयासरत ही रहता

चींटी की भाँती

जीत कर ही विश्राम लेता !!! 

 

मेरी आवाज

Wednesday, November 10, 2010

अमेरिकन बाबू बेचे जात हैं …एक कविता

भैया भारत लगता तो बड़ा संपन्न है

पर विदेशी लोग खाए जात हैं

और अमेरिकन बाबू अपनी चीजें बेचे जात है

जनता बेचारी कान पकडे ही जात है

और कांग्रेस पार्टी राज करे ही जात है

देश को घोटालों से लूटे ही जात है

अमेरिकन बाबू अपनी चीजें बेचे जात है

देश की प्रतिभा पलायन करे ही जात है

और एक प्रतिभा राष्ट्रपति बने ही जात है

पर कुछ करे नहीं पात है

देश गरीब होये जात है

अमेरिकन बाबू अपनी चीजें बेचे जात है

विपक्ष खूब सीटें जीते जात है

पर संसद में ये भी सोये रहत है

बात बात पर धक्का मुक्की होती रहत है

वोट करते में खुद ही बिक जात है

अमेरिकन बाबू अपनी चीजें बेचे जात है ….

 

मेरी आवाज

Friday, October 29, 2010

जीवन

ये जीवन भी धूप छाँव का रेला रे

कभी कठिन तो कभी सरल सा लागे ये

अग्नि क्रोध की कभी उठे

तो कभी समुन्दर उत्सव के

कभी मोह की पाँश का झंझट

कभी अर्थ संचय का चिंतन

कभी बिछडने का गम घेरे

कभी मिलन की आश सँवारे

दम्भ घोर अन्धकार घुमाये

गर्व अनुभूति आनन्दोत्सव ले आये

कभी अतृप्ति अकेलेपन की

कभी विक्षोह परम मित्रों का

इन्द्रधनुष तो बस सतरंगी

जीवन के मेले बहुरंगी

 

मेरी आवाज

Monday, October 18, 2010

अकेला हूँ तो क्या हुआ

अकेला हूँ तो क्या हुआ
तलवार नहीं तो क्या हुआ
जश्ने बहारों का रेला मेरी तरफ नहीं तो क्या हुआ
आवाज तो गूंजेगी
मेरे सतत चिन्तन से
अनवरत सत्य से
दीपक जलाता रहूँगा
आँधी के रेले हैं तो क्या हुआ
मरुस्थल में प्यासा हूँ तो क्या हुआ
रेत पर चलता रहूँगा
लिखता रहूँगा !!

Saturday, August 7, 2010

इन्द्रधनुष

कल वाल स्ट्रीट पर इन्द्रधनुष देखा

अमीरों को तरह तरह के स्वांग करते देखा

किसी को अपने लाडले कुत्ते को घुमाते देखा

तो किसी को पास के जिम में वर्जिश करते देखा

इन सबसे दूर

रात के अँधेरे में,

एक गरीब वृद्ध को अपने लाडले के जीवन के लिए

खाली पड़ी हुई,

बिखरी हुई बोतलें बीनते भी देखा !!

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मेरी आवाज

Friday, August 6, 2010

विषमता

पिज्जा,
पास्ता,
पनीर और पिश्तेदार हलुआ
जो था बारी बारी सब कुछ परोसा गया 
कान्हा,
नटखट,
लाडला और प्यारा
जो भी था हर मनोहारी शब्द बोला गया
पर निवाला उसके मुँह में ना गया
खाने को देखकर मुँह बनाता रहा
माँ से रहा न गया
एक एक कौर विनती कर सह्रदयता से
माँ के द्वारा जबरदस्ती खिलाया गया

रह रह कर मुझे
अधनंगा खड़ा
मेरे गाँव का बच्चा याद आता गया
थाली में जो डाला
उसे आनन्दित हो
दोनों हाथो से
पूरी मस्ती से
स्वाद ले ले कर
कुछ ही देर में चट कर गया
हर कौर के बाद
संतृप्ति की हलकी हलकी
सांस भरता गया
जैसे भोजन की महत्ता
श्रम की तपन का
 अहसास ताजा कर गया !!


Thursday, July 22, 2010

बढता ही जाऊँगा

मैं ना रुकूँगा

ना ही हारूँगा

बस प्रयास के रास्ते

बढता ही जाऊँगा !!

 

सपने संजोकर

कर्मठ की कसौटी पर

आशा के दीप जला

बढता ही जाऊँगा !!

 

नदिया का बहना

सूरज का उगना

सीख लेकर प्रकृति से

बढता ही जाऊँगा !!

मेरी आवाज

Monday, July 19, 2010

यादें

कुछ यादें ऐसी होती हैं

जो भूले ना जाती हैं

इनका स्मरण

खुसी के आँसुओं

से मुझे

ओस की बूंदों की भांति

प्रुफुल्लित कर देता है

 

मानस पर अंकित ये यादें

मंद मंद बयार की भाँती

मुझे सपनों में ले जाती हैं

अपनी गोद में लिटा कर

माँ के आँचल सा

आभास दे जाती हैं

 

मैं सोचता सा रहता हूँ

विवश करता हूँ

खुद को

उन यादों में फिर से जाने को

उन्मुक्त है मन

फिर से

वही राग गाने को

जो अब बसता है

सिर्फ यादों के आसमाँ में

 

मैं मस्त मौला

फिक्र से दूर

अरमानो के समुन्दर में

डुबकी लगा लगा कर

विचारों की उद्वेलना से दूर

तटों की खोज से बेपरख

अपनों के वटवृक्ष जैसी छाया तले

दो वक्त की रोटी

सुकून से खा रहा था

 

महत्वाकांक्षा की आंधी ने

विचारों को ऐसा उद्वेलित किया

मन ही मन सपनों के जाल बुन

पता नहीं कैसी उधड़बुन

के चक्रवातों में फँसा

झूठे दिलासे देता रहा

मन को बहलाने के तरीके ढूंढता फिरता

ऐसे चक्रव्यूह में जा घुसा

जहाँ सिर्फ यादें ही मनोहारी हैं  ….

 

तर्कों के तीर

आवेशों के वेग

वर्तमान को जीने की देते हैं सीख

यादों का इन्द्रधनुषी रूप

शीतल करता

फिर से वहीं बुलाता

जहाँ से शुरू हुई थी ये दौड

 

मेरी आवाज

Friday, July 16, 2010

परिवर्तन

परिवर्तन ही तो मुझको

चलायमान कर जाता

वरना मेरे भावों को

कौन प्रखर कर पाता

बीते पल  सुमधुर यादों के

शायद विस्मृत हो जाते

परिवर्तन नकार के पन्ने

इतिहास न बनने पाते

 

मेरी आवाज

Saturday, July 10, 2010

एक लड़की

एक लड़की
भोली भाली
नाक सुनकती
धीरे धीरे चलती
विद्यालय जाती
जब वापस आती
खिलखिलाती
मुस्काती
सबको हँसाती


मेरी आवाज

Friday, June 25, 2010

चींटी

चींटी तू इतनी सी छोटी पर बड़ी है खोटी
तुझसे छुटकारे की दिखती नहीं कोई गोटी
दिखने में तो तू है नहीं बिलकुल भी मोटी
फिर इतना खाना किधर तू करती है कल्टी
क्रमबद्ध चींटी  सेना एकजुट होकर डटी
गिरकर बार बार चढती दीवाल ये चींटी 
हार कैसे सकती है ये छोटी सी चींटी

Wednesday, June 23, 2010

ब्लॉग्गिंग का बुखार

 

blogging मैं ब्लॉग्गिंग में इतना व्यस्त

पढ़ पढ़ के ब्लॉग हुआ पस्त

घूमूं देता टिपण्णी मस्त मस्त

काम करने के दिन हो गए अस्त

मैं ब्लॉग्गिंग में हुआ इतना व्यस्त

 

मेरी आवाज

Monday, June 21, 2010

मन मीत

मन मीत बड़े प्यारे हो तुम
दिल के नजदीक हो तुम
पास रहकर मैं बता नहीं पाता
दूर जाकर मैं रह नहीं पाता
नदिया में नाव और साथ तेरा
नज्म बन जाए पल का साया  तेरा
सुबह की ओस है तू
रात का चन्दा भी
शाम की बहती बयार भी तू ही
मन का सुकून बिना तेरे अब कहीं ना मिले
जब से देखा तुझको सब कुछ मुझे पराया सा लगे
मेरा मन तुझको ही बस याद करे
दिल की ये बात वो कैसे बयाँ करे




मेरी आवाज

Monday, June 14, 2010

बंजारिन

लौह कूटती बंजारिन
घर घर जाती बंजारिन
गाली देती बंजारिन
जीवन जीती बंजारिन

मंडल अध्यक्षा मिसरायिन
राजनीति में मिसरायिन
भाषण देती मिसरायिन
रोती रहती मिसरायिन

मेरी आवाज

Friday, June 11, 2010

मन रे ...


मन रे,
ओ भँवरे
तू घूमे फिरे
सोचे विचारे
क्या क्या करे ...

ओ भँवरे 
मस्ताने
क्या तेरे कहने
कैसे कहूं तुझे रुकने
कैसे रोकूँ तुझे बहने

ओ भँवरे
तेरी कभी ऊँची और कभी ओछी उड़ान
बिना किसी थकान
नापे  ये सारा जहाँन

मन रे
ओ भँवरे ....


मेरी आवाज

Thursday, June 10, 2010

ब्लॉगर मिलन के समय की कविता


बड़ा था उत्साह हमें आपसे मिलने का
जानने का, बतियाने का
मंद मंद मुस्काने का

धुंध धुंआधार से निकली
उडती तश्तरी में उड़ने का
रूबरू होने का एजेक्स घूमने का

और क्या लिखूं
हिंदी के लिक्खाड़ के सामने
चला आया गुर भी सीखने ब्लॉग का


पूरा लेख और ब्लॉगर मिलन की रिपोर्ट इधर पढें मेरी आवाज पर

Monday, June 7, 2010

एक कविता मूला की खुसी और AC पर ....


इधर AC का तापमान बढ घट रहा है
शरीर के आराम के हिसाब से सेट हो रहा है
उधर मूला झोंपड़ी में औंघा  बीजने को घुमा रहा है 
बीजने से कभी हवा का झोंका आ रहा है
तो कभी औंघे औंघे हाथ सो रहा है
बच्चा हैजे में पड़ा है
और बेटी मलेरिया से तप रही है
फिर भी नींद मुझसे अच्छी सोता है
अपनी उस अनोखी तपती  दुनिया में कभी कभी ही रोता है


मेरी आवाज

Sunday, June 6, 2010

कविता संग्रह प्रिंट मीडिया में ....

'कविता संग्रह' प्रिंट मीडिया में -  (पाबला जी का आभार इसे नोटिस करने के लिए ) 
पेपर वालों ने ब्लॉग का पता गलत डाल दिया है.  फिर भी बहुत बहुत धन्यवाद मेरी कविता प्रकाशित करने के लिए ....





Saturday, June 5, 2010

BP और आयल रिशाव - एक कविता

BP के बिलियन हुए खाली
पर समुन्दर में तेल अभी भी रिसना है जारी
प्रकृति से छेड़खानी इसको पड़ी भारी
इधर उधर मुंह अब  ये ताके अनाड़ी
नए तरीके उर्जा के अपना लो मेरे भाई
नहीं तो ये प्रलय की हुंकार होगी कसाई




मेरी आवाज

चिड़िया की जुबानी ...

चिड़िया चिड़िया से बोली
ऐ सहेली
दुनिया बड़ी अलबेली
छोटा सा पेट लेकर में निकली
फिर भी दाने दाने हर गली निकली
ये बड़े पेट वाले के पास है पेट के साथ इतनी बड़ी हवेली
फिर भी पडा रहता है पलंग पर सारे दिन मवाली
कुछ भी नहीं करते ये और इसकी घरवाली
कैसे ये पेट भरते होंगे तू ही बता मेरी सहेली

 

Friday, June 4, 2010

भाव

आओ कहीं नयी जगह, तो सब अजनबी से लगते है
दो चार दिन में फिर,  कुछ  अपने बन जाते है
ये दुनिया भावों पर टिकी है
भाषा अलग, जमीन अलग, फिर भी कुछ तो मेरे जैसा है

मेरी आवाज

Thursday, June 3, 2010

तेरी लीला

मेरा उड़न खटोला जब बादलों से निकला
सुर्ख सपनों में मैं खुद को ढूँढने निकला
अचानक से खटोले ने खाए हिचकोले
हिला डुला कर सबके जैसे प्राण निकाले
अगले ही पल क्या क्या कर दे
तेरी लीला ईश्वर तू ही बता दे


मेरी आवाज

Tuesday, June 1, 2010

विचार झलकियाँ

आसमान के ये बादल
सपने जैसे सुनहरे
लगते जैसे आँखों में काजल

देखा जब खुद को आईने में
सोचा में क्या हूँ
क्यूं नहीं दिखता जो हूँ मैं  

आसमान छूती गगनचुम्बी इमारतें
ना जाने क्यूं
लिखती नहीं दिखती कोई इबारतें

विशाल झील पर बैठा मैं  सोचूं
लगता है ऐसा
भर दूँ सागर अगर में आंसू न पौछूं  


चाह और अनचाह

होटल पर मेरे बिस्तर पर पड़े हैं अनेक तकिये
बिना बात के सवार हैं ये मेहमान अनचाहे
गाँव में है बीमार बटाईदार
खटिया पर पडा है
दुखी है गरीबी और बीमारी से
खुश है की एक खाट तो है सोने
में फेंक देता हूँ अनचाही तकियों को
वो समेट लेता है मिलती हुई चीजों को
कहता रहता है बार बार
जहाँ चने वहाँ दांत नहीं और जहाँ दांत वहाँ चना नहीं


मेरी आवाज

Monday, May 31, 2010

देश से दूर ...


आज कुछ वृद्ध लोंगों को बतियाते देखा
देश से दूर केवल देश की बात करते देखा
अंग्रेजी में देसी लहजे का स्वाद चखते  देखा
और फिर अचानक देसी भाषा में चुटियाते देखा
कभी दर्द को उभरते देखा
तो कभी बचपन  को याद करते देखा
हर चुटकी में अपनो को दूर होते देखा
बस पुराने लम्हों का अहसास होते देखा
और फिर अचानक से अपने आप को देखा
कल मुझे भी ऐसा होते ही देखा

क्रोध


मैंने मसला है फूलों को
आशा के झरनों और नीव के पत्थरों को
सपनों की श्रंखला और संजीदा भावनाओं को
जब जब डांटा है बच्चों को
जब जब खिजाया है उनको
कैसे भूल सकता हूँ उन लम्हों को
मेरे चलाये गए उन बेदर्द वाणों को
आज जब कोसों दूर अध्ययन करता हूँ उस तामस को
आंसूओं को रोक नहीं पता बहने को
दिल को रोक नहीं पाता कोसने को
चिंतन क्यूं नहीं समझाता मुझको
क्रोध अँधा कर देता है सबको

मेरी आवाज

मैं कहाँ पर हूँ ?

घूम घूम कर मैंने अपना कर दिया हाल बेहाल
समय हो गया जैसे मेरे लिए बेताल

यहाँ पर देखें ...

Wednesday, May 26, 2010

समीर चालीसा

जय समीर हम मिलजुल गायें
देखो जिधर उन्हें ही पायें ***हर ब्लॉग पर
अन्तर्यामी ये कहलायें
हर ब्लॉगर के ब्लॉग पे जायें
जय समीर हम मिलजुल गायें ...


उड़न तस्तरी पर बैठाये
अपने ब्लॉग से नयी नयी ये सैर करायें
मस्त मौला से ये कहलायें
खूब मौज ये हमें करायें
जय समीर हम मिलजुल गायें


बज्ज़ पर भी ये बहुत बजियायें
टिप्पणियों की लाइन लगायें
ब्लॉग जगत में ऐसे छाये
अच्छे अच्छे भी गरियायें
जय समीर हम मिलजुल गायें


मेरी आवाज
समीर "उड़न तस्तरी"

Tuesday, May 25, 2010

गर्मी की तपन

गर्मी से ऐसे हुए हम सभी बेहाल
पसीने को पौंछ पौंछ गीला हुआ रुमाल
कूलर की भौं भौं से सर हुआ हलाल
नौता खाने जा नहीं पाते अब तो चुन्नीलाल
पानी की किल्लत से हर कोई हुआ हलाल
नहाने से बच्चों को अब कुछ नहीं मलाल
ठंडक को तरसें अब तो हर पक्षी डाल डाल

मेरी आवाज

Monday, May 24, 2010

संगीत

संगीत की धुन  ऐसी मधुर
नहीं चाहिए अब कोई विदुर
भाषा भी देखो हो गयी निगुण
मन को मोह लें  इसके ताल और सुर
इसको रचे कोई प्राणी चतुर
इसमें भरा है आनंद प्रचुर


मेरी आवाज

Saturday, May 22, 2010

मंगलौर दुर्घटना के मृतकों को अश्रुपूर्ण श्रद्धांजली !!

Air India के विमान Boeing 737-800 की दुर्घटना में असमय मौत का शिकार हुए सभी यात्रियों को "मेरी आवाज" और कविता संग्रह की तरफ से श्रद्धांजली !!

ईश्वर इनकी आत्मा को शांति प्रदान करे !!

Friday, May 21, 2010

नकली गुरुदेव का महिमामंडन

हो जाते हैं अपनी महिमा में शुरू
आलीशान महलों में रहते ये गुरु
रोज रोज बदलें वाहन ये गुरु
कहते है में ना कभी मरूं
नश्वर हो जाते है खुद ही ये गुरु
फूलों पर चलते हैं ये गुरु
दूसरों को हर मर्ज की दवा देते ये हुजुर
खुद बीमार हों तो डाक्टर के पास जाते गुरु
भाई इन्सान ही होता है गुरु
फिर क्यों समझे खुदा से आगे खुद को गुरु

एक लेख मेरे अन्य ब्लॉग मेरी आवाज पर इसी विषय पर पढ़ा जा सकता है. धन्यवाद !!

Thursday, May 20, 2010

भोपाल गैस त्रासदी की याद में

भोपाल गैस त्रासदी की याद में एक लेख लिखा था मैंने कल, उसी में लिखे मन के कुछ काव्य भाव

मेरी आँखे नम हैं, दिल में अजीब सा दर्द है
और अंतर्द्वंद कई दिन और सालों से ...
उंगलिया लिखती ही जायेंगी
फिर भी उनका दर्द बयां नहीं कर पाएंगी
कैसे दर्द को झेला होगा अनगिनत को गिनते गिनते
आंसू भी कम पड़ गए होंगे शब्दों की तो बात क्या
कहीं पालनहार न रहा तो कहीं बुझ गयी मासूम किलकारी
कोई जिन्दा तो रहा पर मरने से भी बदतर रहा
गरीबी में ही क्यों होता आटा गीला
शायद भगवान् से भी गलती हो गयी होगी

Tuesday, May 18, 2010

सुबह


कल की सुबह फिर एक नयी सुबह
सूरज भी उगेगा फिर से कल की सुबह
पक्षी भी चहकेंगे फिर से कल की सुबह
मेरी आशा बल देगी कर्म का फिर से कल की सुबह
हम होंगे कामयाब फिर से कल की सुबह ....

 
PS : इससे संबधित एक लेख मेरे ब्लॉग मेरी आवाज पर पढ़ा जा सकता है.

अंतर्द्वंद ...

ज्वार भाटे आते रहते हैं मेरे तट पर
विचार उद्वेलित होते रहते है मेरे मन पर
लोग आते रहते है मेरे ब्लॉग पर
जैसे चिड़ियों की चहचहाहट हो खेत पर
रहंट की कलकल ध्वनि हो कुएं पर
घंठो की करतल हो जैसे बाग़ के मंदिर पर
भजनों की धुन जैसे माता के द्वार पर


PS : इससे संबधित एक लेख अंतर्द्वंद - कुछ चीजें पसंद नहीं आ रहीं ?  मेरे ब्लॉग मेरी आवाज  पर पढ़ा  जा सकता है.  

Monday, May 17, 2010

सागर किनारे ....


सामने विशाल झील
पीछे है एक वृहत शहर
कितने भिन्न हैं दोनों किनारे
एक मस्ती का आभास कराये तो दूजा दे मन का आनंद
आसमान से झील को मिलते देखा
जैसे विचारो को गति पकड़ते देखा
रेत कितना आनंद देता
शीशा बन फिर दर्द भी देता
बच्चे सपनों के घरोंदे बनाते
आकृति मिटाते , बनाते, खिलखिलाते
गीले होकर मन ही मन सयाते
हम भी एक दो छींटे सहलाते
और विचारों की सौंधी हवा में खो जाते
जैसे सुबह की ओंस की बूंदे मुंझे जगा रही हो
जैसे जन्नत या सपनों की मनोहारी तरंगे हो
गद्य और पद्य लिखते, मिटाते और सोचते
अपनी प्राणप्रिये को गले लगाते
जिनको घर पर देख स्वभावबस गुसियाते
रेत की गर्मी और टहलते दौड़ते लोग
नावों पर सवार उन्मुक्त मस्त परवाने लोग
हर तरफ आनंद और अंतहीन मस्ती में डूबे लोग
तरो ताजा मेरे मन को करते मेरे मन के संतुष्ट भाव

PS : ये कविता मेरे ब्लॉग मेरी आवाज पर  एक पोस्ट शिकागो की एक सैर मेरे साथ - एक दिन में ... का हिस्सा है.

Tuesday, May 4, 2010

सखा

मेरे सखा बात तो करो
दर्दे दिल अपना बयाँ करो
रूखे रूखे से ना रहा करो
दर्द मेरा भी समझा करो

मेरे पास भी कभी रहा करो  
कभी समंदर किनारे चला करो
मेरे साथ तुम भी सपने बुना करो

ओस कि बूंदे निहारा करो
भाव मेरे समझा करो
आंसुओं कि क़द्र जाना  करो
इन्हें ऐसे ही ना बहाया करो

Sunday, April 25, 2010

ऑफर की दुनिया

ऑफर की दुनिया बड़ी अजीब, मांगे ये हुनर असीम
खो गए इसमें जो, बस हो गए इसके वो
एक ऑफर को देख कर दूजे की याद, और फिर आपस में तुलना की खाज
लगा दी कई वेबसाइट को छलांग, पर ऑफर का कम नहीं होता स्वांग
सब्जी से लेकर कागज कलम तक, और बेडरूम से लेकर drawing रूम तक
कभी कट करते हैं तो कभी कूपन कोड लगाते है, और कभी दुकानों के दर दर भटकते है
ये हमें खूब काम में लगाए रखते है, और कभी कभी मेल इन rebate के इंतजार में खिजाए रखते है
ये ऑफर बड़े बेलगाम और बेरहम होते हैं, फिर भी जाने अनजाने हम सब इनके दीवाने होते है
जय हो ऑफर महाराज की, ये न होते तो हम पता नहीं आज कहाँ होते
हो सकता है उस टाइम ब्लॉग लिख रहे होते, या फिर रसोई में बीबी का हाथ बटा रहे होते
पर इनके होते हम कही नहीं होते, सिर्फ गूगल और जंक मेल में ही खपे और गपे रहते

"एक सम्बंधित लेख मेरे ब्लॉग मेरी आवाज पर"

Thursday, April 15, 2010

जननी जन्मभूमिस्च स्वर्गादपि गरीयसी


माँ की याद में कुछ पंक्तियाँ

निश्छल निर्विकार न्यारी
हर पल मेरी हितकारी
सपनों में भी दुलारी
ममता में सनी बाबरी
ऐसी होती है माँ प्यारी !

तेरा स्पर्श जैसे सम्बल और सुकून
तेरा ममता का आँचल बन गया सामर्थ्य
तुझसे बढ़कर प्रेरणा और क्या होगी
तुझको देखा तो जाना ईश्वर का रूप

हर पल मुझे सोचती माँ
कोसों दूर से भी मेरे हर पल को जानती माँ
हर मंदिर में मेरे लिए दिए सजाती माँ
मेरी हर गलती को मांफ करती माँ
मुझे आंचल के साए में सुलाती माँ
मेरे हर पथ पर साथ निभाती माँ
मेरी छोटी बड़ी खुशियों में उन्मादी माँ
हर वक़्त, अपने लाडले पर सयाती माँ

में रोऊँ या चिल्लाऊं
या फिर गीत ख़ुशी के गाऊं
चाहे कहीं भी में चला जाऊं
और कुछ भी में कर डालूं
बस एक बात में जानूं
तू में हूँ और मैं तू हूँ

~राम त्यागी
अप्रैल १५ 2010

Thursday, April 1, 2010

असमंजस


लिखता हूँ , मिटाता हूँ , सोचता सा रहता हूँ
प्रस्तावना लिखने का मन बना न पाता हूँ
न जाने किस असमंजस में हूँ मैं !

शब्दों के असीमित भंडार से शब्द जुटा न पाता हूँ
अनगिनत मुद्दों से मनचाहा विषय खोज न पाता हूँ
न जाने किस असमंजस में हूँ मैं !

बहुत कुछ सीखकर भी अन्जान सा हूँ
धूप में छांव और जागते में सोने की राह देखता हूँ
न जाने किस असमंजस में हूँ मैं !

यह, वह, यहाँ, वहां, मन, दिल, डील और नो डील
इसी उहापोह का तार्किक विश्लेषण करता रहता हूँ
न जाने किस असमंजस में हूँ मैं !


~ राम त्यागी