Monday, May 31, 2010

क्रोध


मैंने मसला है फूलों को
आशा के झरनों और नीव के पत्थरों को
सपनों की श्रंखला और संजीदा भावनाओं को
जब जब डांटा है बच्चों को
जब जब खिजाया है उनको
कैसे भूल सकता हूँ उन लम्हों को
मेरे चलाये गए उन बेदर्द वाणों को
आज जब कोसों दूर अध्ययन करता हूँ उस तामस को
आंसूओं को रोक नहीं पता बहने को
दिल को रोक नहीं पाता कोसने को
चिंतन क्यूं नहीं समझाता मुझको
क्रोध अँधा कर देता है सबको

मेरी आवाज

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