Friday, June 25, 2010

चींटी

चींटी तू इतनी सी छोटी पर बड़ी है खोटी
तुझसे छुटकारे की दिखती नहीं कोई गोटी
दिखने में तो तू है नहीं बिलकुल भी मोटी
फिर इतना खाना किधर तू करती है कल्टी
क्रमबद्ध चींटी  सेना एकजुट होकर डटी
गिरकर बार बार चढती दीवाल ये चींटी 
हार कैसे सकती है ये छोटी सी चींटी

Wednesday, June 23, 2010

ब्लॉग्गिंग का बुखार

 

blogging मैं ब्लॉग्गिंग में इतना व्यस्त

पढ़ पढ़ के ब्लॉग हुआ पस्त

घूमूं देता टिपण्णी मस्त मस्त

काम करने के दिन हो गए अस्त

मैं ब्लॉग्गिंग में हुआ इतना व्यस्त

 

मेरी आवाज

Monday, June 21, 2010

मन मीत

मन मीत बड़े प्यारे हो तुम
दिल के नजदीक हो तुम
पास रहकर मैं बता नहीं पाता
दूर जाकर मैं रह नहीं पाता
नदिया में नाव और साथ तेरा
नज्म बन जाए पल का साया  तेरा
सुबह की ओस है तू
रात का चन्दा भी
शाम की बहती बयार भी तू ही
मन का सुकून बिना तेरे अब कहीं ना मिले
जब से देखा तुझको सब कुछ मुझे पराया सा लगे
मेरा मन तुझको ही बस याद करे
दिल की ये बात वो कैसे बयाँ करे




मेरी आवाज

Monday, June 14, 2010

बंजारिन

लौह कूटती बंजारिन
घर घर जाती बंजारिन
गाली देती बंजारिन
जीवन जीती बंजारिन

मंडल अध्यक्षा मिसरायिन
राजनीति में मिसरायिन
भाषण देती मिसरायिन
रोती रहती मिसरायिन

मेरी आवाज

Friday, June 11, 2010

मन रे ...


मन रे,
ओ भँवरे
तू घूमे फिरे
सोचे विचारे
क्या क्या करे ...

ओ भँवरे 
मस्ताने
क्या तेरे कहने
कैसे कहूं तुझे रुकने
कैसे रोकूँ तुझे बहने

ओ भँवरे
तेरी कभी ऊँची और कभी ओछी उड़ान
बिना किसी थकान
नापे  ये सारा जहाँन

मन रे
ओ भँवरे ....


मेरी आवाज

Thursday, June 10, 2010

ब्लॉगर मिलन के समय की कविता


बड़ा था उत्साह हमें आपसे मिलने का
जानने का, बतियाने का
मंद मंद मुस्काने का

धुंध धुंआधार से निकली
उडती तश्तरी में उड़ने का
रूबरू होने का एजेक्स घूमने का

और क्या लिखूं
हिंदी के लिक्खाड़ के सामने
चला आया गुर भी सीखने ब्लॉग का


पूरा लेख और ब्लॉगर मिलन की रिपोर्ट इधर पढें मेरी आवाज पर

Monday, June 7, 2010

एक कविता मूला की खुसी और AC पर ....


इधर AC का तापमान बढ घट रहा है
शरीर के आराम के हिसाब से सेट हो रहा है
उधर मूला झोंपड़ी में औंघा  बीजने को घुमा रहा है 
बीजने से कभी हवा का झोंका आ रहा है
तो कभी औंघे औंघे हाथ सो रहा है
बच्चा हैजे में पड़ा है
और बेटी मलेरिया से तप रही है
फिर भी नींद मुझसे अच्छी सोता है
अपनी उस अनोखी तपती  दुनिया में कभी कभी ही रोता है


मेरी आवाज

Sunday, June 6, 2010

कविता संग्रह प्रिंट मीडिया में ....

'कविता संग्रह' प्रिंट मीडिया में -  (पाबला जी का आभार इसे नोटिस करने के लिए ) 
पेपर वालों ने ब्लॉग का पता गलत डाल दिया है.  फिर भी बहुत बहुत धन्यवाद मेरी कविता प्रकाशित करने के लिए ....





Saturday, June 5, 2010

BP और आयल रिशाव - एक कविता

BP के बिलियन हुए खाली
पर समुन्दर में तेल अभी भी रिसना है जारी
प्रकृति से छेड़खानी इसको पड़ी भारी
इधर उधर मुंह अब  ये ताके अनाड़ी
नए तरीके उर्जा के अपना लो मेरे भाई
नहीं तो ये प्रलय की हुंकार होगी कसाई




मेरी आवाज

चिड़िया की जुबानी ...

चिड़िया चिड़िया से बोली
ऐ सहेली
दुनिया बड़ी अलबेली
छोटा सा पेट लेकर में निकली
फिर भी दाने दाने हर गली निकली
ये बड़े पेट वाले के पास है पेट के साथ इतनी बड़ी हवेली
फिर भी पडा रहता है पलंग पर सारे दिन मवाली
कुछ भी नहीं करते ये और इसकी घरवाली
कैसे ये पेट भरते होंगे तू ही बता मेरी सहेली

 

Friday, June 4, 2010

भाव

आओ कहीं नयी जगह, तो सब अजनबी से लगते है
दो चार दिन में फिर,  कुछ  अपने बन जाते है
ये दुनिया भावों पर टिकी है
भाषा अलग, जमीन अलग, फिर भी कुछ तो मेरे जैसा है

मेरी आवाज

Thursday, June 3, 2010

तेरी लीला

मेरा उड़न खटोला जब बादलों से निकला
सुर्ख सपनों में मैं खुद को ढूँढने निकला
अचानक से खटोले ने खाए हिचकोले
हिला डुला कर सबके जैसे प्राण निकाले
अगले ही पल क्या क्या कर दे
तेरी लीला ईश्वर तू ही बता दे


मेरी आवाज

Tuesday, June 1, 2010

विचार झलकियाँ

आसमान के ये बादल
सपने जैसे सुनहरे
लगते जैसे आँखों में काजल

देखा जब खुद को आईने में
सोचा में क्या हूँ
क्यूं नहीं दिखता जो हूँ मैं  

आसमान छूती गगनचुम्बी इमारतें
ना जाने क्यूं
लिखती नहीं दिखती कोई इबारतें

विशाल झील पर बैठा मैं  सोचूं
लगता है ऐसा
भर दूँ सागर अगर में आंसू न पौछूं  


चाह और अनचाह

होटल पर मेरे बिस्तर पर पड़े हैं अनेक तकिये
बिना बात के सवार हैं ये मेहमान अनचाहे
गाँव में है बीमार बटाईदार
खटिया पर पडा है
दुखी है गरीबी और बीमारी से
खुश है की एक खाट तो है सोने
में फेंक देता हूँ अनचाही तकियों को
वो समेट लेता है मिलती हुई चीजों को
कहता रहता है बार बार
जहाँ चने वहाँ दांत नहीं और जहाँ दांत वहाँ चना नहीं


मेरी आवाज