ये जीवन भी धूप छाँव का रेला रे
कभी कठिन तो कभी सरल सा लागे ये
अग्नि क्रोध की कभी उठे
तो कभी समुन्दर उत्सव के
कभी मोह की पाँश का झंझट
कभी अर्थ संचय का चिंतन
कभी बिछडने का गम घेरे
कभी मिलन की आश सँवारे
दम्भ घोर अन्धकार घुमाये
गर्व अनुभूति आनन्दोत्सव ले आये
कभी अतृप्ति अकेलेपन की
कभी विक्षोह परम मित्रों का
इन्द्रधनुष तो बस सतरंगी
जीवन के मेले बहुरंगी